
Deoghar Bus Accident: देवघर से बासुकीनाथ जा रही एक बस में सवार कांवड़ियों को शायद ही अंदाजा रहा हो कि सुबह की वो यात्रा उनकी ज़िंदगी की आखिरी यात्रा बन जाएगी। मंगलवार की सुबह सरठ के पास जबरदस्त हादसा हुआ जिसने सबको हिला कर रख दिया। बस बिहार के नवादा जिले से आई थी, कांवड़िए जल चढ़ा चुके थे और अब बासुकीनाथ दर्शन को जा रहे थे। लेकिन रास्ते में कुछ ऐसा हुआ जो किसी ने सोचा भी नहीं था। तेज रफ्तार और झपकी का खतरनाक मेल जानलेवा बन गया। कहते हैं न, एक पल की लापरवाही बहुत भारी पड़ती है, कुछ ऐसा ही हुआ।
एक झपकी, और बस ने ली छह जानें
बस में बैठे लोगों के मुताबिक, गाड़ी बहुत तेज चल रही थी। ज़्यादातर कांवड़िए थक कर सो रहे थे। उसी बीच ड्राइवर को शायद नींद आ गई और बस सीधा ट्रक में जा टकराई। टक्कर इतनी जोरदार थी कि बस उछलकर एक बड़े पत्थर पर चढ़ गई और फिर ईंटों के ढेर में जा धंसी। जैसे ही हादसा हुआ, बस के अंदर चीख-पुकार मच गई। नींद में सो रहे लोग खून से लथपथ हो चुके थे। जो होश में थे, वो समझ ही नहीं पाए कि अचानक ये सब क्या हो गया। कुछ तो फंस ही गए थे, हिल भी नहीं पा रहे थे। ऐसे में आसपास के लोग ही सबसे पहले दौड़े मदद के लिए।
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खेत में काम कर रहे लोगों ने दिखाया हौसला
घटनास्थल से कुछ दूर खेत में काम कर रहे रामचंद्र ठाकुर नाम के शख्स ने बताया कि एक ज़ोरदार आवाज सुनते ही सब कुछ थम सा गया। वो बोले, “हम भागे-भागे पहुंचे, तो देखा कि बस ईंटों में घुसी पड़ी है। कुछ लोग बेहोश थे, कुछ बुरी तरह घायल। हमने फौरन पुलिस को फोन किया और गाँव वालों को भी बुलाया। फिर सबने मिलकर घायलों को बाहर निकालना शुरू किया।”
जो ज़िंदा थे, उन्हें देवघर सदर अस्पताल और बासुकीनाथ के हेल्थ सेंटर भेजा गया। कई की हालत इतनी खराब थी कि उन्हें सीधा रांची रेफर किया गया।
बार-बार हादसों वाला ‘कुरसेला मोड़’ (Deoghar Bus Accident)
जिस जगह ये एक्सीडेंट हुआ, वो कुरसेला मोड़ पहले से ही बदनाम है। वहां के रहने वाले राधेश्याम सिंह और मोहन महतो बताते हैं कि इससे पहले भी वहां कई बार हादसे हो चुके हैं। लेकिन कोई कुछ करता नहीं। कोई स्पीड ब्रेकर नहीं, कोई अलर्ट बोर्ड नहीं। और जब हादसा हो जाए तो अफसर लोग दौड़कर आते हैं, कैमरा सामने आते ही बयान देते हैं, और फिर सब भूल जाते हैं। इस बार भी वैसे ही हुआ, फर्क बस इतना कि छह परिवारों की दुनिया उजड़ गई।
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कौन थे ये कांवड़िए?
बस में जो कांवड़िए सवार थे, उनमें ज़्यादातर नवादा जिले के अकबरपुर, हिसुआ और पकरीबरावां इलाके के रहने वाले थे। हर साल ये लोग साथ में कांवड़ यात्रा करते थे। इस बार भी उत्साह वही था, लेकिन सफर अधूरा रह गया। प्रशासन ने कहा है कि मृतकों की पहचान कर उनके परिवार वालों को खबर दी जा रही है और जांच भी शुरू कर दी गई है। लेकिन सवाल वही है, क्या सिर्फ जांच से सब ठीक हो जाएगा?
अब भी वक़्त है
लोग कहते हैं कि हादसे तो हो जाते हैं, लेकिन उनमें जो गुजरता है वो सिर्फ वो लोग जानते हैं जिनका कोई चला जाता है। सोचिए, जो लोग दर्शन के लिए निकले थे, वो अब अस्पतालों में ज़िंदगी से लड़ रहे हैं। और जो नहीं बचे, उनके घरों में अब सिर्फ मातम है। ऐसे हादसे हमें झकझोरते हैं, सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या वाकई सिस्टम चल रहा है या हम सब बस किस्मत के सहारे हैं?
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