आर्य समाज के नियम आज के नियमों को पूरी तरह से चुनौती देते हैं। यह इतने प्रभावशाली हैं जो आपके जीवन का मूल मंत्र बन सकते हैं अगर आप आर्य समाज के नियम को अपने जीवन में उतार लें तो आप अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं। आपके रहने का तरीका, आपकी जीने का तरीका सब आर्य समाज के नियम में समाहित है। चलिए देखते हैं आर्य समाज नियम कौन से हैं?

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आर्य समाज क्या है?
आर्य समाज कोई संप्रदाय नहीं, एक विचारधारा है। यह समाज ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा देता है। इसके अनुसार, सच्चा धर्म वही है जो मानवता की भलाई करे, जो सबको साथ लेकर चले, जिसमें कोई अंधविश्वास ना हो और जो वेदों के मूल मंत्र पर चले।
संस्थापक: महर्षि दयानंद सरस्वती
स्थापना वर्ष: 1875
मुख्य उद्देश्य: वेदों के सिद्धांतों पर आधारित समाज की स्थापना
आर्य समाज का इतिहास और स्थापना
आर्य समाज की स्थापना हुई थी तब जब भारत अंग्रेज़ों के अधीन था और धार्मिक अंधविश्वास चरम पर था। महर्षि दयानंद ने वेदों को मूल धर्मग्रंथ माना और मूर्ति पूजा, पाखंड, जात-पात जैसे सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाई। भारत में आज भी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा पाखंड में जी रहा है और अंधविश्वास पर चल रहा है। महर्षि दयानंद सरस्वती इसके एक खिलाफ थे लेकिन उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज अधिक दूर तक नहीं जा पाया।
आर्य समाज के नियम क्यों महत्वपूर्ण हैं?
कुछ लोग कहते हैं आखिर आर्य समाज के नियम में है क्या और यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है? तो आपको यह जानना चाहिए कि आर्य समाज के नियम में लोगों को स्वयं के विकास का मार्गदर्शन मिलता है, इसमें आपको धर्म से उठकर वेदों की ओर जाने का मूल मंत्र मिलता है। आर्य समाज के नियम एक वैज्ञानिक सोच और तर्क पर आधारित है और अंधविश्वास को पूरी तरह से विरोध करता है।
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आर्य समाज के 10 नियम (Arya Samaj Ke 10 Niyam)
अब आते हैं उस भाग पर जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था, आर्य समाज के वो 10 मूल नियम, जो आज भी उतने ही जीवंत हैं जितने 100 साल पहले थे। सोचने वाली बात है आज से करीब 100 साल पहले जो 10 नियम आर्य समाज में दिए गए थे वह आज भी आपके जीवन को एक नई ऊर्जा और एक नई दिशा देने की क्षमता रखते हैं आईए जानते हैं आर्य समाज के 10 मूल नियम:
- नियम 1: ईश्वर सत्य है, वह सबका नियंता है।
- नियम 2: वेद सबके लिए ज्ञान का स्रोत हैं।
- नियम 3: वेदों की शिक्षा लेना और दूसरों को देना कर्तव्य है।
- नियम 4: सच्चाई को अपनाना और असत्य को त्यागना चाहिए।
- नियम 5: हर कार्य धर्मानुसार और नियमों के अनुसार हो।
- नियम 6: दुनिया की भलाई के लिए काम करें।
- नियम 7: प्यार और इंसाफ के साथ सबका व्यवहार करें।
- नियम 8: अज्ञान दूर करें और ज्ञान फैलाएं।
- नियम 9: खुद के सुधार के लिए तैयार रहें और गलतियों को स्वीकारें।
- नियम 10: सबके हित में ही अपने हित को देखें।
आर्य समाज की विचारधारा और आध्यात्मिकता
समाज बाहरी पूजा पाठ और अंधविश्वास का विरोध करता है और आध्यात्मिकता को सम्मान देता है। इंसान का मूल धर्म मानवता है, आर्य समाज प्रार्थना को अधिक प्रभावशाली मानता है पूजा को नहीं। इसमें आपको धर्म से अधिक दर्शन को प्राथमिकता मिलेगी। आर्य समाज की यह तीन लाइन बहुत चर्चित है:
पूजा नहीं, प्रार्थना करें
अंधविश्वास नहीं, अनुभव करें
धर्म नहीं, दर्शन अपनाए
आर्य समाज के नियम किसके लिए हैं?
आर्य समाज के नियम सिर्फ किसी एक धर्म, जाति या संप्रदाय के लिए नहीं हैं, बल्कि ये पूरी मानवता के लिए बनाए गए हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती ने जब आर्य समाज की स्थापना की थी, तब उनका उद्देश्य था, सभी इंसानों को सत्य, ज्ञान और नैतिकता के मार्ग पर चलाना।
निष्कर्ष
जैसे-जैसे दुनिया भागदौड़ और स्वार्थ की ओर बढ़ रही है, वैसे-वैसे ज़रूरत है हमें “आर्य समाज के नियम” को अपने जीवन में उतारने की। इन 10 नियमों में ना केवल आध्यात्मिक, बल्कि सामाजिक, वैज्ञानिक और नैतिक मार्गदर्शन छिपा है, अगर हम सब इन्हें अपने जीवन में ईमानदारी से अपनाएं तो न केवल हम खुद बेहतर इंसान बनेंगे, बल्कि समाज भी रोशनी से भर जाएगा।
क्या आर्य समाज की शादी वैध होती है?
हाँ, आर्य समाज के अनुसार विवाह वैदिक रीति से होते हैं और यह भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है।
क्या आर्य समाज मंदिरों में मूर्ति पूजा होती है?
नहीं, आर्य समाज मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखता। वहाँ केवल यज्ञ और वेद मंत्रों का उच्चारण होता है।
क्या आर्य समाज के नियम बदलते हैं समय के साथ?
नहीं, ये मूल सिद्धांत स्थायी हैं, लेकिन इनकी व्याख्या समय के अनुसार की जा सकती है।